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ओशो को रेडिएशन का धीमा जहर दिया जाना संदेहास्पद, इसके कभी प्रमाण नहीं मिले- डॉ. शैलेंद्र सरस्वती 

  • अमेरिका की जेल में 12 दिन रहने के बाद आगे चलकर शरीर पर पड़ा था असर, तकिये के नीचे रखा गया था रेडियो एक्टिव मटेरियल

बुरहानपुर। मेक्रो विजन एकेडमी में 29 दिसंबर 23 से 1 जनवरी 24 तक मेडिटेशन शिविर लगने वाला है। शिविर में ज्ञान की बातें बताने के लिए देशभर से आचार्य पहुंच रहे हैं, तो वहीं एक दिन पहले बुरहानपुर पहुंचे ओशो के छोटे भाई डॉ. शैलेंद्र सरस्वती ने मीडिया से चर्चा के दौरान कहा-ओशो को क्या धीमा जहर दिया गया था यह बात आज भी संदेहास्पद है। यह एक प्रकार का अनुमान है। इसका कोई प्रमाण नहीं हो सकता, क्योंकि जो रेडिएशन पाइजनिंग होती है उसका पता नहीं चल पाता। कुछ केमिकल को बाद में पता कर सकते हैं, लेकिन रेडिएशन ऐसी चीज है जो उस क्षण रहती है, लेकिन फिर उसका प्रभाव नहीं रहता। विशेषज्ञों का ऐसा अनुमान है। यह मैं अपनी तरफ से नहीं कह रहा हूं। 12 दिन ओशो को जेल में रखा गया। जहां उन्हें सुलाया गया था वहां तकिये के नीचे रेडियो एक्टिव मटेरियल रखा था। वह एक ही करवट सोते थे। एक तरफ के अंग में दर्द होता था। ओशो के दाहिने कान, कंधे में दर्द रहता था। जबड़े में दर्द रहता था। इन सबसे अनुमान लगाया गया कि तकिए के नीचे रेडियो एक्टिव मटेरियल रखा गया। प्रमाण बाद में कुछ नहीं मिले। यह विशेषज्ञों का ही अनुमान है। इस दौरान मेक्रो विजन एकेडमी के संचालक शिक्षाविद आनंद प्रकाश चौकसे, मंजूषा चौकसे मौजूद रही।
284 दिन पहले ही पता चल गया था मृत्यु होने वाली है
उन्होंने कहा ओशो की स्वाभाविक मृत्यु थी। 58 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हुई थी। ओशो को अपनी देह त्यागने का लगभग 10 महीने पता लग गया था। यह तभी होता है जब नेचुरल डेथ होने वाली हो। अगर कोई एक्सीडेंट हो या मर्डर हो इसमें पता नहीं चलता। महर्षि पतंजलि ने अपने योग शास्त्र में लिखा है कि एक जागृत व्यक्ति को उतने दिन पहले अपनी मृत्यु का एहसास हो जाता है जितने दिन वह अपनी मां के गर्भ में रहा हो। ओशो ने इस बात की पुष्टि की थी। 284 तक वह मां के गर्भ में रहे। 19 जनवरी 1990 को देह त्यागी इससे ठीक 284 दिन पहले 10 अप्रैल 1989 को पता चल गया कि उनके विदा होने का समय आ गया। इसके बाद उन्होंने किताबों के जो शीर्षक रखे उससे स्पष्ट किया कि मेरे जाने का वक्त आ गया है। कह दिया था कि कोई उर्जा छोड़कर चली गई है। सृजन से उल्टी विसर्जन की प्रक्रिया होती है। ओशो की 11 किताबों में इसका प्रमाण है। डॉ. शैलेंद्र शैलेंद्र सस्वती के साथ उनकी पत्नी प्रिया शैलेंद्र सरस्वती भी बुरहानपुर पहुंची हैं।
मेरे जीवन में मेडिटेशन पहले आया
डॉ. शैलेंद्र सरस्वती ने कहा-मेरे जीवन में मेडिटेशन पहले आया। ओशो से माला दीक्षा ग्रहण की। एमबीबीएस किया। मेडिटेशन और मेडिशन का अर्थ एक ही है स्वास्थ्य देना। आध्यात्म, ध्यान पहले आया। 12 साल डॉक्टरी की।
सेक्स हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जीवन की शुरूआत ही वहीं से है। ओशो हमें सिखा रहे हैं कि हम काम वासना में रहते हैं तो ध्यान पूर्ण नहीं कर पाते। आत्म स्मरण कैसे रहे। वासना चेतना में रूपांतरित होने लगती है। संभोग से समाधि तक का यही तर्क है। द बुक ऑफ द सिक्रेट्स उसका हिंदी रूपांतरण भी है। उसमें समाधि, ध्यान आदि के बारे में बताया गया है।
क्या मेरा है, क्या मैं हूं इसमें जागरूकता लाना होगी – प्रिया डॉ. शैलेंद्र सरस्वती
इस दौरान प्रिया डॉ. शैलेंद्र सरस्वती ने कहा क्या मेरा है, क्या मैं हूं इसे लेकर जागरूक होना पड़ेगा। जितने हम संवेदनशील हो जाएंगे उतने ही करीब से हम ओंकार की ध्वनि सुन पाएंगे। जीवन को सबको मिला है और जी सभी रहे हैं। जीना तभी कहलाएगा जब वह प्रेमपूर्ण कला हासिल करे। ओशो ने कहा प्रेम ही परमात्मा है। हम सोचते हैं कि प्रेम हमें आता है। प्रेम सब करना चाहते हैं। हम सब प्रेम मांगते हैं जबकि प्रेम देने की चीज है। हर व्यक्ति यह सोचने लगे कि मैं प्रेम दूं।

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