22.7 C
Burhānpur
Thursday, November 14, 2024
22.7 C
Burhānpur
Homeआलेखपरमधाम से माँ की आस....
Burhānpur
scattered clouds
22.7 ° C
22.7 °
22.7 °
42 %
2.1kmh
37 %
Thu
23 °
Fri
31 °
Sat
31 °
Sun
31 °
Mon
31 °
spot_img

परमधाम से माँ की आस….

  • मयंक चतुर्वेदी

वह बैकुंठ वासी हो गईं, फिर उन्होंने नीचे धरती पर देखा…जहां उनका परिवार उनके जाने के बाद उन्हें याद कर रहा था। माँ परमधाम जाने के पूर्व पीछे छोड़ गईं अपनी परम्परागत और कर्मशील आधारित वह यश, कीर्ति एवं तपस्या का भाग जो कि उनकी पीढ़ी में श्रेष्ठ संस्कारों के रूप में धरती पर विद्यमान है । यह पीढ़ी भी अपनी परंपरा के अनुसार ही मिले संस्कारों के आधार पर अपना जीवन जीने के लिए संकल्पित है । माँ का संपूर्ण जीवन आदि-अनादि सनातन संस्कृति, हिंदू तत्व दर्शन एवं भारतीयता के लिए साक्षात देवी के रूप में समर्पित रूप से गुजरा ।
वह माँ जो अपने कार्य की व्यवस्तताओं के बीच में से भी ”अतिथि देवो भव:” के लिए समय निकाल लेती थी। बच्चों के बच्चों और ज्ञान का दीप जलाने के लिए एक शिक्षक, गुरु के रूप में तमाम विद्यालयीन बच्चों को शिक्षा और प्यार दोनों देने के लिए समय निकाल लेती थी। अपने अनुभव की थाती से कुछ ज्ञान के मोती अपनी पीढ़ियों तक में बांटने के लिए उसके पास समय रहा। उस मां को अंतिम पुष्प अर्पण करने के लिए जब यह तमाम राजनेता, बुद्धिजीवी, नौकरशाह, अधिकारी, साहित्यकार, विविध उद्यमी, व्यापारी वर्ग इत्यादि जब एकत्रित हुए तो ऊपर बैकुण्ठ में बैठी माँ के मन में आज यही विचार चल रहा है, मैंने जीते जी धन्यता पाई, देह छोड़ पश्चात् धन्यता पीछे आई।
वे ऐसे अपने कर्म पथ पर चलती रहीं, जिसे ”पंडित दीनदयाल उपाध्याय” चित्त और चिति कहकर बुलाते हैं । इस चित्त और चिति में यदि इस माँ को देखा जाए तो उसमें सिर्फ और सिर्फ सनातन संस्कृति और भारत का वैभव के होने का भाव ही देखा जा सकता था । ऐसे परिवार ने उनकी अंतिम यात्रा पश्चात् जब उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए उनके पुत्र के माध्यम से शांति सभा रखी तो क्या संत, क्या राजनेता, क्या साहित्यकार, क्या उद्योगपति, क्या नौकरशाह और क्या समाज जीवन से जुड़े अन्य पक्ष । कहना चाहिए कि समाज के जितने विविध पक्ष हो सकते हैं, वे सभी इस माँ की श्रद्धांजलि सभा में उन्हें प्रणाम करने आए थे।
अपने पुत्र की यश-कीर्ति देखकर भी मां आज बहुत प्रसन्न है। बेटे ने अपने कुल की कीर्ति को बढ़ाया है। धरती पर पुत्र का यश सर्वत्र दिखाई देता है। इस माँ के बेटे के सम्मान में अच्छे-अच्छे मस्तक नतमस्तक हैं। किंतु आज ऊपर से सबकुछ देखती यह माँ इस बात से भी बहुत चिंतित हो रही है कि मेरे अंतिम नमन के शांति पाठ में जो बड़े-बड़े नाम, मंत्री, उप मंत्री सत्ता के नजदीक रहने वाले सेवादार और तमाम लोग आए हैं, क्या वे वास्तव में उस ज्ञान परंपरा का सम्मान करते हैं जिसके लिए मैंने अपना संपूर्ण जीवन स्वाहा कर दिया!
क्या ये सभी उस हिंदू तत्व को अपने जीवन में लेकर जीते हैं, जो मुझे प्राणों से अधिक प्यारा है! क्या ये सभी मुझे प्रणाम करने के साथ मेरे कर्म को स्मरण करते हुए अपने जीवन में कुछ उसका अंश मात्र भी धारण कर पाएंगे। लगातार हमारे चारों ओर विधर्मी शक्तियां बढ़ रही हैं । कहने को कानून है, धर्म स्वातंत्र्य कानून और भी तमाम कानून । वैसे कोई किसी का मत, पंथ, मजहब रिलिजन और धर्म नहीं बदल सकता, संवधान भी यही कहता है लेकिन लालच, पाखंड और झूठ बोलकर लगातार यह बदला जा रहा है । संविधान के अधिकांश रक्षक मौन नजर आते हैं। जो कुछ काम करते भी हैं, उन्हें हतोत्साहित करते नजर आते हैं।
एक झटके में व्यक्ति से उसकी पहचान छीन ली जा रही है। एक तरफ विदेशी, मिशनरी और मजहबी शिक्षा है और वह सेवा की आड़ लेकर मतान्तरण करा रही है। हमारे हिंदू परिवार और उनके बच्चे लगातार इसके शिकार बन रहे हैं। वे योजना बनाकर षड्यंत्र कर रहे हैं तो दूसरी ओर मेरी हिन्दू सनातन संस्कृति की शिक्षा है, जिसमें सभी के लिए समान रूप से सम्मान भाव है और वह भी स्थायी । किंतु मुझे अपना प्रणाम देने आए यह लोग क्या वाकई में मेरे संपूर्ण हिंदू तत्व के लिए दिए गए जीवन से कुछ अंश अपने जीवन में धारण करके यहां से जाएंगे! क्या ये सभी सत्य के पक्ष में खड़े होकर अपनी शक्ति का सद्उपयोग भी करेंगे?
मां सोच रही है, बस, सोच रही है, एक तरफ अपने जीवन भर के कर्मफल के रूप में प्राप्त इस श्रद्धान्वत लोगों के प्रसाद को पाकर वह प्रसन्न भी है तो कहीं अंदर तक चिंतित भी, उस भविष्य को लेकर जो उसे ऊपर से बहुत कुछ साफ नजर आ रहा है। तमाम षड्यंत्रों के बीच अपने सत्व को बचाने के लिए वे अब इन्हीं लोगों से आशान्वित है, जोकि उसे अपने श्रद्धाफूल चढ़ाने एकत्र हुए हैं।
मां कह रही है, मैं इन सभी के श्रद्धाफूल स्वीकार्य तभी करुंगी, जब ये अपने जीवन में मेरी तरह ही सनातन का व्रत धारेंगे। यदि वास्तव में यह सभी मुझे प्रणाम करने के साथ इस भाव को ग्रहण कर कार्य करते हैं तभी इनकी यह श्रद्धांजलि मुझे स्वीकार्य होगी, अन्यथा तो यह एक मिलने का अवसर मात्र है । मां कह रही है यदि मेरे चित्र पर पुष्प चढ़ाते वक्त आंखों से आंख जिनकी भी टकराई है वे इतना जरूर करें की सनातन के लिए अपना संपूर्ण जीवन ना सही किंतु उस का छोटा सा अंश अवश्य अपनी संस्कृति के लिए अर्पित कर दें।
spot_img
spot_img
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments

spot_img
spot_img