-
मध्य प्रदेश के शिक्षकों के साथ सेवा अवधि में अन्याय: वरिष्ठता और पेंशन लाभों पर संकट
बुरहानपुर। मध्य प्रदेश के शिक्षा विभाग में संविलियन के बाद शिक्षकों के साथ गंभीर धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। राज्य के 3.25 लाख शिक्षकों की सेवा अवधि में 20 वर्षों की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर उनकी नियुक्ति तिथि 2018 दर्ज कर दी गई है। इससे उनका पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य वित्तीय लाभ प्रभावित हो रहे हैं।
ये है मुख्य बिंदु:-
समस्या की जड़:- मध्य प्रदेश कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष एवं नेशनल मूवमेंट ऑफ ओल्ड पेंशन स्कीम के प्रांतीय संयोजक ठाकुर संतोष सिंह दीक्षित ने बताया कि 1998 में नियुक्त शिक्षकों की सेवा अवधि को IFMIS पोर्टल पर 2018 से दिखाया गया है। इससे 20 वर्षों की सेवा अवधि “शून्य” हो गई है, जिससे ग्रेच्युटी और सेवा उपादान में ₹8-10 लाख का नुकसान हो रहा है।
शिक्षकों की नाराजगी: इस अनियमितता से शिक्षक मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं। शिक्षकों का आरोप है कि सेवा अवधि सही होने के बावजूद शिक्षा विभाग और पोर्टल में गलत जानकारी दर्ज की गई है।
आंदोलन और बैठकें:- 27 अक्टूबर को भोपाल में वरिष्ठता और पेंशन अधिकारों के लिए एक अहम बैठक हुई। ठाकुर संतोष सिंह दीक्षित और परमानंद डेहरिया जैसे नेता इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। शिक्षक संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने इस मुद्दे पर शासन से कई बार निवेदन किया, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।
अन्याय के प्रभाव: ऑफलाइन सर्विस बुक और दस्तावेज़ 1998 की नियुक्ति को सही ठहराते हैं। लेकिन पोर्टल पर 2018 की नियुक्ति तिथि दिखाने से पेंशन और वित्तीय लाभों में कटौती हो रही है। यह गलती विशेष रूप से सेवा निवृत्ति और दिवंगत शिक्षकों के परिवारों को आर्थिक रूप से प्रभावित कर रही है।
शिक्षक संगठनों की मांग: संयुक्त मोर्चा के संयोजक जिला अध्यक्ष ठाकुर संजय सिंह गहलोत, संयोजक अनिल बाविस्कर, विजय राठौड़, डॉक्टर अशफाक खान, प्रमिला सगरे, कल्पना पवार, राजेश पाटील, सतीश दामोदर,धर्मेंद्र चौकसे ने शिक्षा विभाग से पोर्टल की नियुक्ति तिथि को तुरंत सही करने की मांग की गई है। 1998 से सेवा में कार्यरत शिक्षकों की वरिष्ठता और उनके लाभ बहाल किए जाएं।
मानसिक तनाव और आर्थिक नुकसान झेल रहे शिक्षक
शिक्षा विभाग की इस अनियमितता ने शिक्षकों के अधिकारों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। मानसिक तनाव और आर्थिक नुकसान झेल रहे शिक्षक समाधान के लिए आंदोलनरत हैं। शासन और शिक्षा विभाग को इस समस्या का त्वरित और प्रभावी समाधान निकालकर शिक्षकों का विश्वास बहाल करना चाहिए। शिक्षा और शिक्षकों की समस्याओं को अनदेखा करना न केवल उनकी गरिमा के लिए बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक है।