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बच्चों को संस्कार दिये बिना सुविधाएं देना उनके पतन का कारण बन जाता है

नवीन शैक्षणिक सत्र प्रारंभ हो चुका है, और हर माता-पिता के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि वे अपने बच्चों के लिए कौनसा स्कूल चुनें। आजकल के बच्चों में शिक्षा और संस्कार का मुद्दा गहराई से उठ रहा है। बच्चों को सिर्फ़ व्यवसायिक शिक्षा देने के कारण वे संस्कारों से वंचित हो रहे हैं। इससे उनका समाज में सही स्थान नहीं बन पा रहा है। बच्चों को संस्कारिक और नैतिक मूल्यों को समझाने की आवश्यकता है। बच्चों के पतन के मुख्य कारणों में से एक है उन्हें उनके संस्कारों का सही अध्यापन नहीं मिलना। विद्यालयों में बच्चों को सिर्फ़ व्यापारिक मानविकी की शिक्षा मिल रही है, जिससे उन्हें समाज में सही स्थान नहीं मिल पा रहा है। इस समस्या का समाधान करने के लिए विद्यालयों को बच्चों को संस्कारिक शिक्षा भी देना चाहिए। स्कूलों में संस्कारिक गतिविधियों को शामिल करना चाहिए ताकि बच्चे न केवल व्यावसायिक ज्ञान प्राप्त करें बल्कि साथ ही अच्छे नागरिक और उच्च मूल्यों को भी सीखें। आजकल विद्यालय शिक्षा न देते हुए केवल व्यवसायिक बन गए हैं। संस्कृति और शैक्षिक परिवेश के विकास के लिए शिक्षा का द्वंद्व बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन आजकल विद्यालयों में इस दिशा में भी व्यवसायिकता का दबाव बढ़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप, बच्चों को विद्यालयी शिक्षा के माध्यम से समाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का ज्ञान नहीं हो रहा है। विद्यालयों के शिक्षकों को विभिन्न विषयों के साथ-साथ समाजिक और नैतिक शिक्षा देने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके लिए सामाजिक गतिविधियों, नैतिक मूल्यों के प्रश्नों पर चर्चा के अवसर, और अन्य संस्कृतिक कार्यक्रमों को शामिल किया जा सकता है। विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम न केवल व्यवसायिक योग्यता का होना चाहिए, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टिकोण को भी समझाने में सक्षम होना चाहिए।वर्तमान में यह देखने में आ रहा है कि स्कूल अपने निजी स्वार्थ के लिए कम योग्यता वाले शिक्षकों की नियुक्ति कर लेते हैं जिनमें खुद नैतिक मूल्यों की कमी दिखाई पड़ती है। कम योग्यता वाले शिक्षकों का प्रभाव वास्तव में शिक्षा प्रणाली को भी प्रभावित करता है, साथ ही बच्चों के मानसिक एवं बौद्धिक विकास पर भी विपरीत असर डालता है। इससे बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच स्कूल अपने निचले स्तर पर जा सकते हैं। वर्तमान परिपेक्ष्य में यह कहना गलत नहीं होगा कि स्कूल क्वालिटी पर ध्यान दें न कि क्वांटिटी पर।स्कूल का चयन करते समय प्राचार्य का ट्रैक रिकॉर्ड, स्कूल का पिछले तीन वर्षों का बोर्ड परीक्षा परिणाम, शिक्षकों की योग्यता एवं अनुभव तथा स्कूल में अनुशासन के मापदंड जरूर देखें।

  • धीरज चतुर्वेदी (स्कूल प्राचार्य)
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