28.6 C
Burhānpur
Sunday, April 20, 2025
28.6 C
Burhānpur
spot_img
Homeआलेखसबसे पहले दक्षिण भारत में बने प्रभु श्री राम के मंदिर 
Burhānpur
clear sky
28.6 ° C
28.6 °
28.6 °
28 %
1.7kmh
0 %
Sun
42 °
Mon
42 °
Tue
44 °
Wed
44 °
Thu
43 °
spot_img

सबसे पहले दक्षिण भारत में बने प्रभु श्री राम के मंदिर 

  • डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल

कई बार जिज्ञासुगण प्रश्न पूछते हैं कि मंदिर में राम की परिकल्पना का प्राचीन प्रमाण कौन सा है? इसका उलट प्राय: यह मिलता है कि उत्तरी महाराष्ट्र में पांचवीं शताब्दी के पूर्वार्ध का राम मंदिर। लोक विश्वास ऐसा मिलता है कि गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त ने अपना एक आदेश रामगिरि स्वामी के पाद भू से जारी किया था जो रुद्रपुर ताम्रपट्टाभिलेख में अंकित है। प्रभावती गुप्त वाकाटक नरेश रूद्र सेन द्वितीय की पत्नी थीं।
महाकवि कालिदास ने ‘मेघदूत’ काव्य में रामगिरि की पहाड़ियों के लिए कहा है कि वह रघुपति के चरणचिह्नों से अंकित हैं। नागपुर के समीप रामटेक को रामगिरी माना जाता है किंतु किसी साक्ष्य के अभाव में यह कहना कठिन है कि यहां राम की कोई प्रतिमा स्थापित की गई थी। हां जनश्रुति है कि राम वनवास के समय वहां से गुजरे थे। धनुषधारी राम का रूप गुप्त नरेशों में स्कंद गुप्त को सर्वाधिक प्रिय रहा है। विष्णु का आयुध ‘शारंग’ धनुष सिक्कों पर धनुर्धारी राम के रूप में अंकित है।
ईसवी सन की प्रथम सहस्राब्दी तक राम विष्णु-मंदिर में मौजूद तो हैं किंतु गौण देवता के रूप में हैं। राम की लोकप्रियता जैन रामायणों तथा ललित साहित्य की रचनाओं के रूप में तेजी से उनके बढ़ते प्रभाव का प्रमाण है। इस काल के अनेक मंदिरों में राम कथा उत्कीर्ण है। पांचवीं छठी शताब्दी के देवगढ़ के मंदिर में दशावतार, चालुक्य मंदिरों में और राष्ट्रकूट कालीन आठवीं शताब्दी एलोरा की गुफाओं में राम कथा की महिमा मिलती है। भूलने के विरुद्ध यह बात है कि भक्ति साहित्य में राम की पूजा के भाव-भजन सर्वप्रथम आलवारों के भजन पूजन में प्राप्त होते हैं।
राम मंदिरों के निर्माण की परंपरा सबसे पहले दक्षिण भारत में आरंभ हुई। बाद में उत्तर भारत, मध्य प्रदेश (अब छत्तीसगढ़) में जैसे रामलोचन मंदिर का निर्माण। चोल राजाओं ने सीता-राम-लक्ष्मण के मंदिर निर्मित किए और इन राजाओं ने ‘कोदंडराम’ की उपाधि भी धारण की। वाल्मीकि की रामावतार कल्पना के राम असाधारण जरूर हैं लेकिन लोकप्रियता में जनता के बहुत अपने हैं। जनता उनके नैतिक आदर्श का अनुकरण करती है। वे ऐसे कुलीन राम नहीं है जो जनता से दूर रहें।
राजा में विष्णु का अंश दरबारी परंपरा में ऐसा पनपा कि उनकी कथा में अभूतपूर्व नाटक की मिथक जोड़ने गए। सूर्यवंशी कहकर राजाओं ने अपने वंश को राम से जोड़ लिया। दक्षिण के चोल और राम एक हो गए। यह विश्वास है कि रामानुजाचार्य का दीक्षा संस्कार तिरुपति के कोदंडराम मंदिर में हुआ था।

spot_img
- Advertisment -spot_img

Most Popular

Recent Comments

spot_img
spot_img