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पार्षदों ने कार्यपालन यंत्री और टाइम कीपर को हटाने की मांग की
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सांसद, विधायक, महापौर और आयुक्त के नाम सौंपा ज्ञापन
बुरहानपुर। नगर पालिका निगम में तैनात प्रभारी कार्यपालन यंत्री प्रेम कुमार साहू और टाइम कीपर विवेक बिसेन के खिलाफ नगर निगम के पार्षद लामबंद हो गए हैं। पार्षदों का आरोप है कि ये दोनों अधिकारी जनप्रतिनिधियों के साथ अभद्र व्यवहार कर रहे हैं और आम जनता के कार्यों में अड़चनें डाल रहे हैं। इस संबंध में सांसद, विधायक, महापौर और आयुक्त को ज्ञापन सौंपा गया है, जिसमें पार्षदों ने संबंधित अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
क्या है पूरा मामला?
नगर निगम में निर्वाचित पार्षदों का कहना है कि वे जनता की समस्याओं और नगर विकास से जुड़ी योजनाओं को लेकर नगर निगम प्रशासन के पास जाते हैं, लेकिन वहां तैनात कार्यपालन यंत्री प्रेम कुमार साहू और टाइम कीपर विवेक बिसेन का व्यवहार गंभीर रूप से गैर-जिम्मेदाराना और असहयोगात्मक है।
पार्षदों के अनुसार अधिकारी जनप्रतिनिधियों से ठीक से बात तक नहीं करते और अभद्रता करते हैं। जनता से जुड़े कार्यों को जानबूझकर टालमटोल किया जाता है, जिससे नागरिकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शासकीय सेवकों के आचरण नियमों के खिलाफ जाकर पार्षदों का अपमान किया जाता है, जिससे प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
क्या हैं पार्षदों की मांगें?
• प्रभारी कार्यपालन यंत्री प्रेम कुमार साहू और टाइम कीपर विवेक बिसेन को उनके मूल पद पर भेजा जाए।
• नगर निगम प्रशासन इन अधिकारियों पर कार्रवाई करे और पार्षदों को उनके कार्यों में सहयोग प्रदान करे।
• यदि दो दिन में उचित कार्रवाई नहीं की जाती है, तो पार्षदगण आंदोलन करने पर विवश होंगे।
आंदोलन की चेतावनी
पार्षदों ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि 48 घंटों के भीतर उचित कदम नहीं उठाए गए, तो वे प्रदर्शन और आंदोलन करने को मजबूर होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो इसकी संपूर्ण जिम्मेदारी नगर निगम प्रशासन की होगी।
मामला राजनीतिक स्तर पर तूल पकड़ता
• यदि प्रशासन द्वारा त्वरित कार्रवाई नहीं की जाती, तो यह विवाद और बढ़ सकता है।
• पार्षदों का आंदोलन नगर निगम के कामकाज को प्रभावित कर सकता है, जिससे शहर की सफाई, जल आपूर्ति, सड़क मरम्मत और अन्य सेवाएं बाधित हो सकती हैं।
• अगर यह मामला राजनीतिक स्तर पर तूल पकड़ता है, तो सांसद, विधायक और महापौर को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।
अब देखना यह होगा कि नगर निगम प्रशासन इस गंभीर मामले पर क्या कदम उठाता है और क्या संबंधित अधिकारियों पर कोई कार्रवाई की जाती है या नहीं।