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नेपानगर विधायक मंजू दादु ने उठाया मुद्दा, विशेषज्ञ समिति गठित कर उच्च स्तरीय जांच की मांग
बुरहानपुर। नगर पालिका निगम बुरहानपुर में नियमों को ताक पर रखकर 10 कर्मचारियों को समयमान वेतनमान का अवैध लाभ देने के गंभीर मामले को नेपानगर विधायक मंजू दादु ने मध्यप्रदेश विधानसभा में जोरदार तरीके से उठाया। उन्होंने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से सरकार का ध्यान इस अनियमितता की ओर खींचते हुए विशेषज्ञ समिति द्वारा उच्च स्तरीय जांच और दोषी अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की मांग की।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल नगर निगम बुरहानपुर में समयमान वेतनमान का लाभ देने की प्रक्रिया में गंभीर वित्तीय अनियमितता पाई गई है। सरकारी नियमों के अनुसार, किसी भी कर्मचारी को समयमान वेतनमान देने के लिए विभागीय छानबीन समिति से अनुमोदन आवश्यक होता है। लेकिन इस मामले में 11 महीने पहले ही 10 कर्मचारियों को वेतनमान का लाभ दे दिया गया, जो नियमों के पूरी तरह विपरीत है।
प्रश्न यह उठता है कि निगम में 250 से अधिक कर्मचारी पदस्थ हैं, तो केवल 10 ही कर्मचारियों को यह लाभ क्यों दिया गया? क्या यह किसी विशेष गुट को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया?
विधायक मंजू दादु ने सदन में उठाए गंभीर सवाल
• छानबीन समिति में 4 में से केवल 2 सदस्यों के हस्ताक्षर क्यों?
🔹 नियमों के अनुसार समिति के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं।
🔹 2 सदस्यों ने हस्ताक्षर नहीं किए, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रक्रिया गुपचुप तरीके से पूरी की गई।
• क्या समिति का एक सदस्य खुद को लाभ दिलाने के लिए अनुशंसा कर रहा था?
🔹 छानबीन समिति के एक सदस्य का नाम स्वयं लाभार्थियों की सूची में था।
🔹 क्या यह हितों का टकराव (Conflict of Interest) नहीं है?
• निगम आयुक्त ने सदन में गलत जानकारी क्यों दी?
🔹 विधायक दादु ने विधानसभा में बताया कि उनके पूर्व के तारांकित प्रश्न क्र. 1519 के माध्यम से जब यह जानकारी मांगी गई थी, तो निगम आयुक्त द्वारा गलत और अपूर्ण उत्तर दिया गया।
• क्या कर्मचारियों की गोपनीय चरित्रावली (CR) न होने का दोष कर्मचारियों पर डाला गया?
🔹 गोपनीय चरित्रावली (CR) बनाए रखने की जिम्मेदारी आयुक्त की होती है, न कि कर्मचारियों की।
🔹 जब CR से संबंधित दस्तावेज ही पूरे नहीं थे, तो वेतनमान स्वीकृति का आधार क्या था?
नियमों की अनदेखी कैसे हुई? – रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
🔹 समयमान वेतनमान का लाभ देने से पहले विभागीय छानबीन समिति की मंजूरी जरूरी थी, जो 11 महीने बाद ली गई।
🔹 समिति के 4 में से 2 सदस्यों ने हस्ताक्षर नहीं किए, फिर भी आदेश जारी हुआ।
🔹 लाभार्थियों में से एक स्वयं समिति का सदस्य था, जिससे हितों के टकराव का मामला बनता है।
🔹 250 कर्मचारियों में से सिर्फ 10 को ही यह लाभ क्यों दिया गया?
🔹 निगम आयुक्त द्वारा विधानसभा में दिए गए उत्तर गलत और अपूर्ण थे।
🔹 अभी भी कई कर्मचारी इस लाभ से वंचित हैं।
विधायक मंजू दादु की मांगें – क्या होनी चाहिए कार्रवाई?
• विशेषज्ञ समिति गठित कर उच्च स्तरीय जांच कराई जाए।
• नियमों का उल्लंघन करने वाले आयुक्त और स्थापना शाखा के दोषी अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई हो।
• अन्य कर्मचारियों को भी समान रूप से समयमान वेतनमान का लाभ दिया जाए।
• भविष्य में ऐसी वित्तीय अनियमितताओं को रोकने के लिए सख्त निगरानी समिति बनाई जाए।
आयुक्त और अधिकारियों पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
यह मामला न केवल वित्तीय अनियमितता का है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और भाजपा सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाने की साजिश भी प्रतीत होता है। विधायक मंजू दादु ने इसे भाजपा सरकार की जनहितैषी छवि को धूमिल करने का प्रयास बताया है।
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि: “भाजपा सरकार हमेशा कर्मचारी हितैषी रही है, लेकिन ऐसे अधिकारी और कर्मचारी सरकार की छवि को खराब करने में लगे हैं। अगर दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो कर्मचारियों का सरकार पर से विश्वास उठ जाएगा।”
अगली कार्रवाई क्या होगी?
यह मामला अब विधानसभा में राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर गंभीर मुद्दा बन चुका है।
🔹 क्या सरकार इस घोटाले की निष्पक्ष जांच करवाएगी?
🔹 क्या दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होगी या मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
🔹 क्या 250 अन्य कर्मचारियों को भी इस योजना का लाभ मिलेगा?
सभी की नजरें अब सरकार की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं। यदि समय पर उचित कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मुद्दा और भी बड़ा बन सकता है।