मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रदेश के सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जो उनकी पदोन्नति और वेतनमान से जुड़ी नीतियों को सीधे प्रभावित करेगा। हाई कोर्ट की फुल बेंच ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई कर्मचारी पदोन्नति लेने से इनकार करता है, तो वह न तो क्रमोन्नति का हकदार होगा और न ही उसे समयमान वेतनमान का लाभ दिया जाएगा। यह फैसला सरकारी सेवा में कार्यरत हजारों कर्मचारियों के लिए दूरगामी प्रभाव डाल सकता है।
दरअसल यह मामला इंदौर खंडपीठ में विचाराधीन था, जहां यह प्रश्न उठाया गया था कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी पदोन्नति नहीं लेना चाहता, तो क्या उसे क्रमोन्नति और समयमान वेतनमान का लाभ मिलना चाहिए? इससे पहले, लोकल फंड ऑडिट विभाग के कर्मचारी लोकेन्द्र अग्रवाल के मामले में हाई कोर्ट ने यह निर्णय दिया था कि पदोन्नति से इनकार करने के बावजूद कर्मचारी को दी गई क्रमोन्नति वापस नहीं ली जा सकती। इसी तर्क के आधार पर याचिकाकर्ता रमेशचंद्र पेमनिया ने भी अदालत में अपील की थी।
राज्य शासन का तर्क
राज्य शासन की ओर से कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि यदि कोई कर्मचारी स्वेच्छा से पदोन्नति लेने से इनकार करता है, तो उसे भविष्य में किसी भी परिस्थिति में वेतनमान और क्रमोन्नति की पात्रता नहीं दी जानी चाहिए। राज्य सरकार का कहना था कि पदोन्नति एक प्रक्रिया है, जिसे स्वीकार करने पर ही कर्मचारी को वेतनमान वृद्धि और अन्य लाभ मिल सकते हैं।
हाई कोर्ट का फैसला
हाई कोर्ट की फुल बेंच ने 3 मार्च 2025 को यह फैसला सुनाया। इस बेंच में जस्टिस संजीव सचदेवा, जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस विनय सराफ शामिल थे। कोर्ट ने राज्य शासन के रुख को सही ठहराते हुए स्पष्ट किया कि पदोन्नति से इनकार करने वाले कर्मचारियों को भविष्य में किसी भी तरह की वेतन वृद्धि या पदोन्नति का अधिकार नहीं मिलेगा।
फैसले के प्रभाव
1. सरकारी कर्मचारियों पर सीधा असर: जो कर्मचारी किसी कारणवश प्रमोशन नहीं लेना चाहते थे, वे अब वेतनमान में बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं रख सकते।
2. सरकारी नीतियों में संभावित बदलाव: यह फैसला राज्य सरकार को अपनी पदोन्नति और वेतनमान से जुड़ी नीतियों को और अधिक स्पष्ट करने के लिए बाध्य कर सकता है।
3. संभावित कानूनी चुनौतियां: यह मामला उच्चतम न्यायालय में चुनौती का विषय बन सकता है।
वकीलों की प्रतिक्रिया
अधिवक्ता आनंद अग्रवाल का कहना है कि इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि पदोन्नति और समयमान वेतनमान दोनों अलग-अलग होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रमोशन और समयमान वेतनमान स्वतंत्र अवधारणाएं हैं, इसलिए भले ही कर्मचारी प्रमोशन से इनकार कर दे, लेकिन उसे वेतनमान और क्रमोन्नति से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
संभावित अगला कदम
• यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के लिए जा सकता है, जहां उच्चतम न्यायालय के फैसले के आधार पर नीति में बदलाव संभव हो सकता है।
• कर्मचारी संगठनों की ओर से भी इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और पुनर्विचार याचिकाएं दायर की जा सकती हैं।
प्रभावित होंगे कर्मचारी
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का यह फैसला सरकारी कर्मचारियों की सेवा शर्तों को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण निर्णय है। इस फैसले के तहत पदोन्नति से इनकार करने वाले कर्मचारियों को भविष्य में वेतन वृद्धि और अन्य लाभों से वंचित रहना होगा। हालाँकि, कानूनी विशेषज्ञों की राय में यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती का विषय बन सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कर्मचारी संगठन और प्रभावित कर्मचारी इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं या नहीं।