-
नेपा मिल्स श्रमिक संघ के पदाधिकारियों ने सांसद से की मुलाकात
-
25 साल से चली आ रही वेतन पुर्ननिर्धारण की फिर रखी मांग
बुरहानपुर। करोड़ों की लागत से नेपा मिल का कायाकल्प हुआ है और मिल अपने अस्तित्व में आई है, लेकिन यहां अब भी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं हो रहा है। यह बात नेपानगर से दिल्ली पहुंचे प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय से कही। दरअसल एक प्रतिनिधिमंडल सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्री से मिलने पहुंचा था। इस दौरान नेपा मिल श्रमिक संघ के अध्यक्ष देवीदास लोखंडे, प्रधान सचि रविशंकर पवार, सचिव संजय पवार, कार्यकारी अध्यक्ष उमेश सोनी, सलाहकार हेमंत करांगले ने अपनी बात रखी। साथ ही अन्य समस्याएं भी बताई गई। प्रमुख रूप से वेतन पुर्ननिर्धारण की मांग रखी गई।
बोले-गुणवत्तापूर्ण लेखन, मुद्रण कागज भी नहीं बन रहा
केंद्रीय मंत्री को बताया गया कि नेपा मिल में व्यवसायिक उत्पादन प्रारंभ होने के 2 साल बाद भी आज तक नवनिर्मित मशीनें और प्लांट पूरी क्षमता और दक्षता से कार्य नहीं कर पा रहे हैं। जिसके कारण आज तक गुणवत्तायुक्त अखबारी कागज और लेखन मुद्रण योग्य कागज का निर्माण संभव नहीं हो सका है। सभी कंपनियों, एजेंसियां कार्य बंद कर अपने हिस्से का भुगतान प्राप्त कर चुकी है। इन अधिकृत कंपनियों, एजेंसियों को जारी किए गए कार्य आदेश के अनुसार कार्य पूर्ण कर छह माह तक मशीनों को चलाकर कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाना था, लेकिन ऐसा न किया जाकर वह यहां से जा चुकी हैं। वर्तमान में गुणवत्तायुक्त उत्पादन नहीं हो रहा है। जिसका खामियाजा यहां के मेहनतकश श्रमिक भोगने को बाध्य और विवश है। आगे कहा गया कि आज भी हमारे श्रमिक जिसने आरएमडीपी योजना के कामों को पूर्ण करके अपना खून पसीना बहाकर दिन रात मेहनत की वह आज भी 1997 के 25 साल पुराने वेतनमान इस मंहगाई के दौर में अपने परिवार का भरण पोषण और पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने को विवश हैं। बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य के चक्कर में कर्ज में डूबे हुए हैं। भविष्यनिधि तक समाप्त कर सेवाकाल के आखिरी पड़ाव में खुद को लुटा पिटा और ठगा सा महसूस कर रहे हैं। सेवानिवृत्ति होने के बाद दो जून की रोटी की व्यवस्था करना उनके लिए दूभर हो गया है।
2007 के वेतनमान पर काम कर रहे श्रमिक
श्रमिक संघ नेताओं ने कहा वर्ष 2012 में जब मिल को पैकेज स्वीकृत हुआ था तब संस्थान में लगभग 3 हजार कर्मचारी थे जो आज की स्थिति में महज 180 हैं। उस समय वेज बिल कम करने के उद्देश्य से वीआरएस योजना लागू की गई। वर्ष 2013 से 2019 के मध्य वीआरएस लेकर जाने वाले श्रमिकों को 2007 के वेतनमान के ऐवज में 50 प्रतिशत अतिरिक्त राशि का लाभ दिया जा चुका है और शेष बचे 180 श्रमिकों ने संस्थान को लगातार सेवाएं दी है वह आज भी 2007 और 2017 के वेतन पुर्ननिर्धारण की प्रतिक्षा कर रहे है। इतना ही नहीं बल्कि श्रमिक 150 की वार्षिक वेतनवृद्धि से वंचित है। वहीं दूसरी ओर लगभग 300 संविदागत श्रमिकों की नियुक्ति की जाकर इनका वेज बिल स्थायी कर्मचारियों से अधिक हो गया है। उपर इनके वेतन का निर्धारण भी नियमानुसार नहीं किया गया। अपने चहेतों को 2007 के वेतन निर्धारण के अनुरूप वेतन का भुगतान और अन्य सुविधाएं दी जा रही है। स्थायी श्रमिक आज भी इस हितलाभ से वंचित हैं जो अनुचित होकर आपत्तिजनक व निराशाजनक भी है। इससे कर्मचारियों के उत्साह और मनोबल पर विपरीत असर पड़ रहा है। केंद्रीय मंत्री से मांग की गई कि शेष बचे 180 श्रमिकों का 25 सालों से लंबित 2007 का वेतन पुर्ननिर्धारण करने की महती स्वीकृति देकर न्याय करें।