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तुझमें राम, मुझ में राम और सब में राम

किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व और अस्मिता, स्वत्व और स्वाभिमान उस देश के श्रद्धा व आस्था केंद्रों, महापुरुषों के स्मृति स्थलों तथा सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण व संवर्धन पर निर्भर करता है। यथा यह इतिहास का कड़वा सच है कि बर्बर विदेशी आक्रांताओं ने हमारे हजारों श्रद्धा, पुण्य और प्रेरणा केंद्रों को ध्वस्त कर राष्ट्रीय स्वाभिमान को आहत करने का दुस्साहस किया था। उन्होंने हिंदुस्तान में हजारों मंदिरों को तोड़ा और फिर अपने वर्चस्व का दंभ दिखाने के लिए, उन्हीं मंदिरों के स्थान पर उन्हें मंदिरों के मलवे से नई ईमारतें खड़ी कर दी। देश के कोने-कोने में ऐसे अनगिनत स्थान हैं। जिनमे काशी विश्वनाथ, मंदिर वाराणसी, श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, श्री राम जन्मभूमि अयोध्या तथा गुजरात का सोमनाथ मंदिर भारत की राष्ट्रीय-सांस्कृतिक प्रभाव धारा के मुख्य स्रोत रहे हैं। अतः उनके ध्वंस का दंश हिंदू समाज को हमेशा सालता रहा और इसीलिए उनकी पुनर्स्थापना की मांग और प्रयास निरंतर जारी रहे। ऐसा होना सभी स्वतंत्र व स्वाभिमानी देशों व समाजों में होता आया है, और यह स्वाभाविक भी है। आखिर हमारे धर्म भी तो यही सिखाते हैं की किसी भी धर्म का अपमान ही अधर्म व सम्मान धर्म है। इसीलिए अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना आऐ और विश्व का कल्याण हो अजर अमर है।
स्तुत्य, ऐसे पुण्य स्थानों में देवात्माओं के रूप में मानवता, विश्वास, आस्था और सत्य मार्ग का वास होता है। जो जन-जीवन के लिए मर्यादित आदर्श के साथ-साथ भक्तिमय जिंदगानी है। जिससे सराबोर हमारा प्राण-पण प्रभु के श्री चरणों में अर्पित कर देता है। ताकि हमारे सदगुणों और त्योहारों में ईश्वरीय कर्मप्रेणता जीती-जागती आलौकिक होना चाहिए। तभी मेरा प्रभु-मेरा मन आचरण का हिस्सा होगा। यही भाव भगवान और इंसान के बीच अटूट संबंध का प्रवाहमान बनेगा। यह सब हर इंसान की अंतर्मन में विद्यमान है जरूरत है तो अपने आप में इसकी निष्ठा से खोज की। कहते हैं ना दिल से बुलाओगे तो राम भी मिल जाएंगे। एक बार बुला कर तो देखिए राम मिल भी जाएंगे और देख भी जाएंगे। आखिर हमारे रोम-रोम में बसे हैं जो राम।
स्मरणित, जगतवंदन, दशरथनंदन भारत के लिए राम केवल पूजा के देव नहीं है। वे राष्ट्रीय अस्मिता, राष्ट्रीय गौरव, भारत भक्ति और मर्यादा के मानदंडों के अनुसार जीवन-व्यवहार करने वाले राष्ट्रपुरुष हैं। राम देश की आस्था के प्रतीक, इतिहास के धीरोदात्त नायक। लोकजीवन में शील और मर्यादा को स्थापित कर बने पुरुषोत्तम। भारत के राष्ट्रपुरुष राम। रामराज्य अर्थात शील का अनुगामी राज्य। लोक कल्याण के लिए कृतसंकल्प। भारत के इतिहास में शासन-विधान का सर्वोच्च मापदंड है। इसीलिए देश के संविधान की प्रथम तिथि पर पुष्पक विमान में विराजमान माता जानकी और श्री लक्ष्मण सहित अयोध्या नरेश श्री राम का रेखाचित्र अंकित किया गया। अवतरित भगवान श्री राम का सारा जीवन आराध्य के साथ सतसंग का पावन पथ है, चलते ही वैतरणी पार होगी। जैसा राम युग में हुई वैसा कलयुग में भी संभव है, लिहाजा हमें अपने भीतर के राम को जगाना होगा। जो कहीं ना कहीं आज के समय में लोभ-माया, छल-कपट, गुण-अवगुण और व्यभिचारादि में खो गया है। अन्यथा काल युग के रावण सभ्य समाज के संस्कार, संस्कृति और मर्यादा को दुराचार के दम पर तार-तार कर देंगे। बतौर हमें राम को मन और मंदिर में रमाना होगा। यही राम नाम की मर्यादा, मन-मन में समाहित कर रामराज्य की अभिकल्पना साकार करेगी। ऐसा राम भक्त चाहते और रामायण कहती है। मनोरथ सब में सर्वस्त्र केवल और केवल राम दिखे और मिले। बेहतर राम नाम के साथ राम काम भी जीवन काल का अहम हिस्सा बने। इसी चरित्र का चित्रण तुझ में राम, मुझ में राम और हम सब में राम का यशोगान अनंत काल तक किया जाता रहेगा।

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