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केनरा बैंक, डिक्रीधारी को वसूली प्रक्रिया के खर्च के 50 हजार अदा करे
बुरहानपुर। न्यायालय सप्तम एडीजे इंदौर लखन लाल गोस्वामी ने 15 दिसंबर को ऐतिहासिक फैसला दिया। इसकी कॉपी रविवार को अधिवक्ता को मिली। केनरा बैंक एशाखा नंदानगर इंदौर को कोर्ट ने आदेश दिया कि वह डिक्रीधारी कमल कॉट स्पिन प्रालि बुरहानपुर को न्यायालय में लगे खर्च की राशि 50 हजार रूपए अदा करे। व्यर्थ के आवेदन लगाकर वसूली प्रक्रिया को प्रभावित, लंबान कर न्यायालय के अमूल्य समय की बर्बादी के साथ साथ विपक्षी पक्षकार को प्रत्येक पेशी पर वकील नियुक्त करने आदि के भारी भरकम खर्च के मामले में डिक्रीधारी कमल कॉट्सपिन प्रालि बुरहानपुरष् की ओर से वसूली प्रक्रिया निष्पादन न्यायालय में लगे खर्च की राशि दिलाए जाने के लिए प्रस्तुत आवेदन पर न्यायालय सप्तम एडीजे इंदौर लखन लाल गोस्वामी ने यह फैसला दिया।
डिक्रीधारी कमल कॉट स्पिन बुरहानपुर की ओर से न्यायालय सहित हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पैरवीरत अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल ने इस फैसले को ऐतिहासिक फैसला बताते हुए कहा कि यह फैसला न्यायिक क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन करने वाला महत्वपूर्ण फैसला है। इस फैसले से वे सभी पक्षकार भी सोचने पर मजबूर होंगे कि मात्र 10 रूपए का टिकट लगाकर न्यायालय में सुनवाई तारीख बढ़वाई जा सकती है, बल्कि ऐसी सोच रखने वाले पक्षकारों को इस फैसले के परिणाम स्वरूप अब भविष्य में विपक्षी पक्षकार को न्यायालय में लगने वाले खर्चष् की अदायगी भी करनी ही होगी तथा इसमें न्यायालय को भी छूट दिए जाने की कोई गुंजाइश नहीं होगी।
यह विधि के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव
अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल ने कहा विधि के क्षेत्र में यह महत्वपूर्ण बदलाव सुप्रीम कोर्ट भारत के मुख्य न्यायमूर्ति जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ द्वारा न्यायिक क्षेत्र में किए जा रहे महत्वपूर्ण सुधारों के कारण हुआ है, क्योंकि कुछ समय पूर्व ही उन्होंने कहा था कि फैसला होने के बाद भी निष्पादन अर्थात वसूली प्रक्रिया में अब भी 1872 के जमाने के कानून अनुसार कई वर्ष लग रहे हैं जिसकी मुखालिफत करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सुधारों की बात कही थी और आज सप्तम एडीजे न्यायालय इंदौर का हालिया निर्णय इन सुधारों का ही नतीजा है। अग्रवाल ने कहा उनके पक्षकार की ओर से निष्पादन न्यायालय में 115 सुनवाई दिनांकों में लगे खर्च के रूप में अधिक राशि 16 लाख और 7.50 लाख इस तरह 23.50 लाख रूपए मांगी गई थी, लेकिन सप्तम एडीजे निष्पादन न्यायालय इंदौर द्वारा केवल 50 हजार मंजूर की गई है। खर्च मंजूर करने के फैसले से तो उनका पक्षकार संतुष्ट है, लेकिन इसकी राशि की मात्रा के फैसले से उनका पक्षकार संतुष्ट नहीं है इसलिए इस राशि की बढ़ोतरी के लिए वे उच्च न्यायालय में कार्रवाई करने जा रहे हैं।