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अधीनस्थ न्यायालय ने पाया था दोषी, दी थी तीन तीन वर्ष के कारावास की सजा
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बुरहानपुर के जाने माने विद्वान अधिवक्ता राजीव बन्नातवाला ने की पांच आरोपियों की ओर से पैरवी
बुरहानपुर। 2005 के बहुचर्चित बुरहानपुर की सिटीजन कोऑपरेटिव बैंक के अनंत नगर घोटाले में अपीलीय कोर्ट का बड़ा निर्णय आया हैं। जिसमें अपीलीय न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय के फैसले को पलटते हुए सभी आरोपियों को किया दोषमुक्त कर दिया।
संक्षेप में अभियोजन का मामला इस प्रकार है
अभियुक्त लीलाधर प्रजापति, मनोज सोनी, संजय कक्कड़ एवं मनोज पटेल सिटीजन को ऑपरेटिव बैंक में कर्मचारियों के रूप में कार्यरत थे। अभियुक्त यशवंत मोरे उक्त बैंक में लेखापाल के रूप में कार्यरत था। हरगोविंद यादव उक्त बैंक का मुख्य कार्यकारी अधिकारी था, अभियुक्त जयवंती पटेल उक्त बैंक के संचालक मंडल की अध्यक्ष थी। अभियुक्त लीलाधर प्रजापति एवं मनोज कुमार सोनी द्वारा संयुक्त रूप से ग्राम मोहम्मदपुर की भूमि क्रय करने के लिए सिटिजन कोऑपरेटिव बैंक बुरहानपुर की मुख्य शाखा से कुल 28 लाख रुपए का ऋण प्राप्त किया था और उक्त राशि बैंक द्वारा ऋण स्वीकृत किए जाने के पश्चात उनके बचत खाता में अंतरित की गई थी, जिसे उनके द्वारा नगद आहरित किया गया था और उनके द्वारा भूमि क्रय की गई थी। इसी प्रकार अन्य दो कर्मचारी संजय कक्कड़ एवं मनोज कुमार पटेल द्वारा भी संयुक्त रूप से मोहम्मदपुरा में भूमि क्रय करने के लिए संयुक्त रूप से सिटीजन को ऑपरेटिव बैंक बुरहानपुर की मुख्य शाखा से ऋण प्राप्त किया गया था और उक्त राशि बैंक द्वारा ऋण स्वीकृत नगद आहरित कर उनके द्वारा भूमि क्रय की गई थी।
पुलिस के अनुसार उक्त चारों अभियुक्तगण लीलाधर, मनोज सोनी, संजय कक्कड़ एवं मनोज पटेल द्वारा क्रय की गई भूमियों पर संयुक्त रूप से कॉलोनी निर्माण की कार्यवाही की और इसके लिए उक्त चारों अभियुक्तगण द्वारा नगर पालिका निगम बुरहानपुर से कॉलोनाइजर का रजिस्ट्री प्रमाण पत्र प्राप्त किया था, उपरोक्त क्रय की गई भूमि को ज्ञानेश्वर पाटिल, अनंत देशमुख और मनोज पंजाबी को विक्रय करने के लिए इकरारनामा किया था और उसके बदले में कुछ राशि नगद प्राप्त की थी और चेक प्राप्त किए थे, परंतु उक्त चेक उन्होंने भुगतान हेतु संबंधित बैंक में नहीं लगाया और चारों कर्मचारियों द्वारा क्रय की गई भूमि को बेचने के लिए इकरारनामा करके जिसके भी नाम से पंजीयन करने का कहा जाएगा उसके नाम से पंजीयन करने की शर्त उक्त इकरानामा में डाली गई। उसके संबंध में जांच करने पर यह पाया गया कि अभियुक्त लीलाधर प्रजापति, मनोज सोनी, मनोज पटेल द्वारा मुख्य कार्यपालन अधिकारी हरगोविंद यादव के कहने पर कॉलोनी निर्माण की कार्यवाही की गई थी और उसके लिए ऋण प्राप्त किया गया था, जिसमें उपरोक्त ऋण का ठहराव प्रस्ताव रजिस्टर में पृथक से जोड़कर ऋण नियमों के विपरीत जाते हुए अचल सपंत्ति के मूल्य से अधिक सपंत्ति का मूल्य प्रदर्शित करते हुए ऋण प्राप्त किया। जबकि नियमानुसार सपंत्ति के मूल्य के 50 प्रतिशत से अधिक ऋण नहीं दिया जा सकता है। ऋण स्वीकृत किए जाने में ऋण नियमों का कोई पालन बैंक की ओर से अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा नहीं किया गया था, जो ऋण अभियुक्तगण लीलाधर प्रजापति, मनोज कुमारसोनी, संजय कक्कड़ एवं मनोज पटेल द्वारा प्राप्त किया गया था, उक्त ऋण की संपूर्ण राशि का उपयोग भूमि खरीदने के लिए नहीं किया गया है।
जांच के दौरान उक्त कर्मचारियों ने यह स्वीकार किया कि भूखंड मूल्य से अधिक राशि स्वीकृत की जाना एक गंभीर त्रुटि है। उक्त मामले की जांच कलेक्टर बुरहानपुर के आदेश पर संयुक्त कलेक्टर एवं कार्यपालक दंडाधिकारी दीपक सक्सेना जो वर्तमान में कलेक्टर जबलपुर हैं द्वारा की गयी।
अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय को अपीलीय न्यायालय ने पलटा
उक्त बहुचर्चित प्रकरण में अधीनस्थ न्यायालय द्वारा आरोपियों को 3 – 3 वर्ष के कारावास से दंडित किया था। जिसकी प्रथम अपील द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बुरहानपुर के न्यायालय में की गई थी। जिसमें अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय को अपीलीय न्यायालय ने पलटते हुए सभी दस आरोपियों को दोष मुक्त कर दिया। यहां आपको बता दे कि दस आरोपियों में से पांच आरोपियों की ओर से पैरवी बुरहानपुर के विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव बन्नातवाला ने की। उनके तर्कों एवं प्रकरण की बारीकियों पर गौर करते हुए आरोपियों को दोषमुक्त किया गया।