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Friday, April 18, 2025
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मुख्यमंत्री के सख्त तेवर- अब मप्र में नहीं चलेंगे नियम विरुद्ध संचालित होने वाले मदरसे

  • कैबिनेट बैठक में डॉ. मोहन यादव ने कहा हिंदू बच्चों के नाम फर्जीवाड़ा करके अनुदान प्राप्त करने वाले मदरसों की मान्यता होगी समाप्त

भोपाल। प्रदेश में असंवैधानिक रूप से संचालित हो रहे मदरसों के भौतिक सत्यापन की रिपोर्ट ने सरकार की नींद उड़ा दी है। कई जिलों में ऐसे मदरसों को चिह्नित किया है, जिनमें दूसरे धर्म के बच्चों को प्रवेश दिया गया। उनके नाम से मदरसा संचालक सरकार से अनुदान भी ले रहे थे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कैबिनेट बैठक में स्पष्ट कर दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 28 (3) के प्रावधान के अनुसार मदरसों में अध्ययनरत बच्चों को उनके धर्म की शिक्षा के विपरीत अन्य धर्म की शिक्षा ग्रहण करने अथवा उपासना में उपस्थित होने को बाध्य करने वाले मदरसों के सभी शासकीय अनुदान बंद किए जाएंगे। ऐसे मदरसों की मान्यता समाप्त करने की विधिवत कार्यवाही सहित अन्य उपयुक्त वैधानिक कार्यवाही भी सुनिश्चित की जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत चलने वाले मदरसे हर हाल में बंद किए जाएंगे।
हिंदू बच्चों के नाम फर्जीवाड़ा करके अनुदान प्राप्त करने वाले मदरसों की मान्यता भी समाप्त होगी। उनके संचालकों पर वैधानिक कार्रवाई भी की जाएगी। इसके लिए जांच के निर्देश दिए गए हैं।
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की सख्ती
गौरतलब है कि राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की शिकायत पर हो रही जांच में यह मामला सामने आया कि प्रदेश के मदरसों में नौ हजार से अधिक हिंदू बच्चों के नाम दर्ज हैं। इसी आधार पर श्योपुर जिले में 56 मदरसों की मान्यता समाप्त की गई है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने पर प्रतिबंध लगाने को लेकर स्कूल शिक्षा विभाग ने निर्देश जारी किए हैं।
निकाय अध्यक्षों के खिलाफ 3 सालों में आएगा अविश्वास प्रस्ताव
प्रदेश में अब नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 2 साल की बजाए 3 साल में आएगा। नगरीय प्रशासन विभाग के प्रस्ताव पर कैबिनेट ने मुहर लगा दी है। अभी तक निकाय अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की अवधि 2 साल थी। अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए अब दो तिहाई की जगह तीन चौथाई बहुमत की जरूरत होगी। यानी निकाय अध्यक्षों को हटाना अब और भी मुश्किल होगा। अब निकाय अध्यक्षों के 5 साल के कार्यकाल में उनके खिलाफ सिर्फ एक बार ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। पहले 2 बार मौका मिलता था। पहले अविश्वास प्रस्ताव के लिए पहले दो तिहाई यानी 10 में से (6.7) फीसदी बहुमत की जरूरत पड़ेगी। इसे अब तीन चौथाई कर दिया है। यानी 10 में से 7.5 फीसदी बहुमत की जरूरत पड़ेगी। निकायों के अध्यक्षों का इसी महीने 2 साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। कई निकाय अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की भूमिका बनने लगी थी। ऐसे में पिछले माह निकाय जनप्रतिनिधियों ने अविश्वास प्रस्ताव की अवधि बढ़ाने की मांग रखी थी।

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