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शहीद लांस नायक मो. साबिर का परिवार न्याय की लड़ाई में एक और कदम आगे
बुरहानपुर। देश की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर सपूत लांस नायक मोहम्मद साबिर के परिवार को न्याय पाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है। भारत सरकार ने उनके शहीद का दर्जा और सैनिक न्यायालय (ए.एफ.टी.) द्वारा दिए गए फैसले को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी है।
पूरा मामला: वीरगति से न्याय तक की यात्रा
8 अप्रैल 2002 की रात, लांस नायक मो. साबिर बटालिक सेक्टर (जम्मू-कश्मीर) की चोरबटला चौकी पर तैनात थे, जब पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में उनकी शहादत हो गई। उनके पार्थिव शरीर को पूरे सैन्य सम्मान (गार्ड ऑफ ऑनर) के साथ अंतिम संस्कार के लिए बुरहानपुर लाया गया।
तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने 2 मई 2002 को उनके परिवार को पत्र लिखकर उनके बलिदान की सराहना की और राष्ट्र की ओर से शोक संवेदनाएं व्यक्त की थीं। इस पत्र में उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि लांस नायक मो. साबिर ने राष्ट्र की रक्षा में सर्वोच्च बलिदान दिया है।
कानूनी लड़ाई की शुरुआत
शहीद का दर्जा और परिवार को मिलने वाले लाभ सुनिश्चित करने के लिए, परिवार ने अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल की सहायता से आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (ए.एफ.टी.) लखनऊ/जबलपुर में जनवरी 2015 में याचिका दायर की।
ए.एफ.टी. का निर्णय (2018 – 2023)
• 7 मार्च 2018 – सैनिक न्यायालय (ए.एफ.टी.) ने परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया।
• 20 सितंबर 2023 – अंतिम आदेश में सरकार को परिवार को आर्थिक मुआवजा देने का निर्देश दिया गया।
• 66 महीने बाद भी आदेश का पालन नहीं हुआ, और सरकार ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
भारत सरकार का विरोध और हाईकोर्ट में चुनौती
2024 में भारत सरकार ने ए.एफ.टी. के आदेश को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी। 7 जनवरी 2025 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में) ने सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए स्टे ऑर्डर (स्थगन आदेश) जारी कर दिया और परिवार से जवाब मांगा।
अब आगे क्या होगा?
अब परिवार की ओर से अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल हाईकोर्ट में सरकार के खिलाफ पैरवी करेंगे। इस कानूनी लड़ाई का नतीजा कई अन्य शहीद परिवारों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।
संभावित परिणाम और प्रभाव
• यदि परिवार केस जीतता है, तो उन्हें उनका हक मिल सकता है।
• अन्य शहीद परिवारों को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे अपने अधिकारों के लिए न्यायालय का सहारा लें।
• सरकार की नीति और सैनिकों के परिवारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर बड़ा सवाल उठ सकता है।