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बुरहानपुर में भू-माफिया राज: शासकीय भूमि पर कब्जे और बिक्री का मामला
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करोड़ों की शासकीय भूमि का घोटाला: प्रशासन की मिलीभगत उजागर
मामले की पृष्ठभूमि
स्थान- ग्राम आसेर, बुरहानपुर
भूमि- खसरा नंबर 67 (रकबा: 3.56 हेक्टेयर)
यह भूमि 1985 और 1996 की सरकारी मिसल में “घास मद” के रूप में दर्ज है। सरकारी रिकॉर्ड में इसे सरकारी चरनोई भूमि के रूप में सुरक्षित रखा गया था।
बुरहानपुर। ऐतिहासिक शहर अब भू-माफियाओं का गढ़ बनता जा रहा है। यहां सरकारी और वफ्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जे और उनकी अवैध बिक्री की घटनाएं आम होती जा रही हैं। एक ऐसा ही गंभीर मामला आरटीआई एक्टिविस्ट और व्हिसल-ब्लोअर राकेश सेईवाल ने उजागर किया है, जो सरकारी भूमि के दुरुपयोग और बिक्री से जुड़ा है।
भू-माफियाओं की चाल
सोमा पिता चिंधू, निवासी ग्राम आसेर, ने 2003 में तत्कालीन तहसीलदार के समक्ष दावा किया कि उन्हें 1998-99 में इस भूमि का शासकीय पट्टा मिला था। तहसीलदार ने बिना उचित जांच के सोमा को भूमि का स्वामित्व दे दिया। राकेश सेईवाल के अनुसार, इस प्रक्रिया में पटवारी की रिपोर्ट गायब है, और तहसीलदार ने इसे जांचे बिना ही फैसला सुना दिया। 1990 के बाद से किसी भी व्यक्ति को सरकारी कृषि भूमि पट्टे पर नहीं दी जा सकती थी। तहसीलदार ने पट्टे का मूल दस्तावेज मांगे बिना सोमा के आवेदन को स्वीकृत कर लिया।
भूमि का अवैध हस्तांतरण और बिक्री
2006 में सोमा के निधन के बाद, उनके वारिसों ने न्यायालय से अपने नाम पर भूमि दर्ज करा ली। 2024 में यह भूमि 48.90 लाख रुपए में सुधीर शांताराम पाटिल नामक व्यक्ति को बेच दी गई, जबकि इसकी अनुमानित बाजार कीमत 1 करोड़ रुपए से अधिक है।भूमि की यह कीमत इंदौर-इच्छापुर फोरलेन बनने के बाद आसमान छू गई।
ये सुलगते सवाल
– पटवारी की रिपोर्ट क्यों गायब है?
– तहसीलदार ने बिना जांच रिपोर्ट के स्वामित्व का आदेश क्यों दिया?
– 1990 के बाद सरकारी भूमि पट्टे पर देने का कोई नियम नहीं है, फिर भी यह प्रक्रिया कैसे हुई?
– “अहस्तांतरणीय” भूमि को कैसे बेचा गया?
– भूमि की वास्तविक कीमत 1 करोड़ से अधिक आंकी गई है, लेकिन इसे 48.90 लाख में कैसे बेचा गया?
पटवारी और तहसीलदार की भूमिका संदेहास्पद
राकेश सेईवाल ने इस मामले को “अत्यंत गंभीर” बताते हुए प्रशासन की कार्यशैली और भू-माफियाओं की सांठगांठ पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा “यह शासकीय भूमि करोड़ों की है। इसे बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों ने नियमों का घोर उल्लंघन किया है। पटवारी और तहसीलदार की भूमिका की गहन जांच होनी चाहिए।