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जिला और प्रदेश अध्यक्ष चुनाव में राजनीतिक गतिविधियां तेज़
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के जिला और प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। संगठनात्मक मजबूती और आगामी चुनावों की तैयारी को ध्यान में रखते हुए पार्टी नेतृत्व जिला स्तर से प्रदेश स्तर तक अपने पदाधिकारियों का चयन कर रहा है।
मध्यप्रदेश में बीजेपी के जिला और प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव सिर्फ संगठनात्मक बदलाव नहीं हैं, बल्कि यह पार्टी की चुनावी रणनीति और जातिगत समीकरण साधने का प्रयास भी है। आने वाले दिनों में इन नियुक्तियों का असर राज्य की राजनीति और आगामी चुनावों पर स्पष्ट दिखाई देगा।
जिला अध्यक्षों के चुनाव की स्थिति
• चुनाव प्रक्रिया: जिला अध्यक्षों के नाम तय करने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है।
• अटकाव: करीब 8-10 जिलों में स्थानीय नेताओं के बीच चल रही रस्साकशी को सुलझाने के लिए बैठकें और चर्चाएं हो रही हैं।
• घोषणा: पहली सूची में 50% से अधिक जिलों के अध्यक्षों के नाम घोषित किए जाएंगे।
• इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी।
प्रदेश अध्यक्ष के लिए दावेदारी
प्रदेश अध्यक्ष का पद संगठन के लिए बेहद अहम है, और इसे लेकर कई बड़े नाम दावेदारी पेश कर रहे हैं।
1. वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा:
• वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा करीब 4 साल 10 महीने से इस पद पर हैं।
• उनका कार्यकाल पहले एक बार बढ़ाया जा चुका है, और अब वे तीसरे कार्यकाल के लिए प्रयासरत हैं।
2. जातिगत समीकरण और अन्य दावेदार:
ब्राह्मण वर्ग:
• डॉ. नरोत्तम मिश्रा: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के करीबी और संगठन में ब्राह्मण वर्ग की मजबूत पकड़।
• राजेंद्र शुक्ल: विंध्य क्षेत्र से आते हैं और पांचवीं बार रीवा से विधायक हैं। बुंदेलखंड और विंध्य में गहरी पैठ।
• अर्चना चिटनीस: पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक। यदि महिला कोटा प्राथमिकता में हुआ, तो उनका नाम प्रमुख हो सकता है।
क्षत्रिय वर्ग:- अरविंद भदौरिया, बृजेंद्र प्रताप सिंह और सीमा सिंह जादौन ये सभी क्षत्रिय वर्ग की मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं।
वैश्य और अन्य वर्ग:
• हेमंत खंडेलवाल (वैश्य वर्ग) और भगवानदास सबनानी (सिंधी समाज) जैसे नाम भी चर्चा में हैं।
• दलित और आदिवासी वर्ग के नेता भी अपनी दावेदारी मजबूत करने में लगे हैं।
राजनीतिक समीकरण और चुनौतियां
• जातिगत संतुलन: बीजेपी नेतृत्व ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, सिंधी, दलित, और आदिवासी सभी वर्गों को साधने की कोशिश कर रहा है।
• क्षेत्रीय संतुलन: विंध्य, बुंदेलखंड, और मालवा-निमाड़ जैसे क्षेत्रों को संगठनात्मक रूप से मजबूत बनाने की योजना।