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सहयोगियों के साथ सीटों को लेकर मोलभाव की स्थिति भी हुई कमजोर
लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस पार्टी में उत्साह की लहर थी, लेकिन हाल के हरियाणा विधानसभा चुनाव और जम्मू-कश्मीर में पार्टी के कमजोर प्रदर्शन ने कांग्रेस की उम्मीदों पर ब्रेक लगा दिया है। इसके साथ ही, कांग्रेस के लिए अपने सहयोगियों के साथ सीटों को लेकर मोलभाव की स्थिति भी कमजोर हो गई है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हरियाणा की हार के बाद महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में सहयोगियों के साथ सीटों के तालमेल में कांग्रेस की स्थिति अब कमजोर हो सकती है, जहां विधानसभा चुनाव जल्द ही होने वाले हैं।
हरियाणा की हार और कांग्रेस के लिए चुनौती
हरियाणा में कांग्रेस की हार पार्टी के रणनीतिकारों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई है। पार्टी को इस चुनाव में जीत की पूरी उम्मीद थी और यह विश्वास था कि हरियाणा में जीत के बाद वह महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में मजबूत स्थिति में होगी। कांग्रेस की रणनीति थी कि हरियाणा में जीत के बाद वह अपने सहयोगियों के सामने बेहतर स्थिति में रहेगी और सीटों के बंटवारे में उसकी दावेदारी मजबूत होगी। लेकिन हरियाणा में अप्रत्याशित हार ने पार्टी की इस योजना को धराशायी कर दिया है। पार्टी ने हालांकि हरियाणा के चुनाव परिणामों को ‘षड़यंत्र’ करार देते हुए इस जनादेश को स्वीकार करने से इनकार किया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि हार से कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई है।
उत्तर प्रदेश में सपा का दबाव बढ़ा
हरियाणा की हार का असर उत्तर प्रदेश में भी दिखाई दे रहा है। कांग्रेस, जो उपचुनावों के लिए सीट शेयरिंग को लेकर समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ बातचीत कर रही थी, अब सपा के सामने कमजोर स्थिति में आ गई है। सपा ने बिना गठबंधन फाइनल किए ही करहल सीट पर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है, जिससे कांग्रेस के लिए स्थिति और मुश्किल हो गई है। सूत्रों की मानें तो सपा अब कांग्रेस को सिर्फ एक ही सीट देने पर विचार कर रही है, और वह फूलपुर सीट का प्रस्ताव दे सकती है।
महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) का सख्त रुख
महाराष्ट्र में कांग्रेस की सहयोगी शिवसेना (यूबीटी) भी अब सख्त रुख अपनाने लगी है। शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने हरियाणा की हार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ सीधे मुकाबले में कमजोर पड़ जाती है। महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा चल रही है, और शिवसेना (यूबीटी) अपनी बड़ी भूमिका की मांग कर रही है। इसके साथ ही, महा विकास आघाड़ी (एमवीए) के मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा पहले करने पर जोर दिया जा रहा है।
लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस ने महाराष्ट्र में एमवीए के सबसे बड़े घटक के रूप में उभरने की उम्मीद की थी, और अब विधानसभा चुनावों में भी वह सीट बंटवारे में अपनी बड़ी हिस्सेदारी चाहती है। हालांकि, हरियाणा की हार ने पार्टी की स्थिति को कमजोर कर दिया है और अब झारखंड में झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा) और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ सीट बंटवारे में भी कांग्रेस को मुश्किलें हो सकती हैं।
गठबंधन पर संकट
हरियाणा की हार ने कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी को भी उजागर किया है। पार्टी के अंदर नेताओं के बीच की मतभेद इस हार के प्रमुख कारणों में से एक माने जा रहे हैं। इससे पार्टी की राजनीतिक स्थिति पर भी असर पड़ा है, और आगामी चुनावों में पार्टी को अपने सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाने में और अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
क्या कांग्रेस कर पाएगी वापसी?
हरियाणा की हार को लेकर कांग्रेस की ओर से प्रतिक्रिया आई है कि एक चुनाव की हार को दूसरे चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। पार्टी के मीडिया प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा कि लोकसभा चुनावों में हरियाणा में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा था, और यह जरूरी नहीं है कि हर चुनाव का परिणाम एक जैसा हो। उनका कहना है कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर सकती है और जो लोग यह सोच रहे हैं कि पार्टी कमजोर हो गई है, उन्हें जवाब मिलेगा। हरियाणा की हार ने कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति पर गंभीर असर डाला है। महाराष्ट्र और झारखंड जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी की रणनीति पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, पार्टी यह दावा कर रही है कि वह आगामी चुनावों में वापसी करेगी, लेकिन यह देखना बाकी है कि कांग्रेस अपने सहयोगियों के साथ सीटों के बंटवारे और चुनावी रणनीति में कैसे कामयाब होती है।