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लोकसभा चुनाव के लिए 10 मार्च के बाद कभी भी लागू हो सकती है आचार संहिता, राजनीतिक सरगर्मी तेज
बुरहानपुर। लोकसभा चुनाव के लिए सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं। खंडवा संसदीय सीट से भाजपा ने इस बार फिर ढाई साल सांसद रहे ज्ञानेश्वर पाटिल पर ही विश्वास जताया है। अपने कार्यकाल के दौरान सांसद ने पार्टी संगठन के नेताओं से लगातार मुलाकात कर अपना रिपोर्ट कार्ड पेश किया। नतीजा यह रहा कि सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल को ही पार्टी ने मैदान में उतारा। इधर, कांग्रेस में उम्मीदवार ढूंढने से भी नहीं मिल रहा है। पिछली बार ज्ञानेश्वर पाटिल के सामने चुनाव हारे खंडवा जिले के कांग्रेस नेता ठाकुर राजनारायण सिंह ने आर्थिक परेशानी के चलते चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है तो वहीं करीब 3 साल से पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण यादव न सिर्फ बुरहानपुर-खंडवा बल्कि की निमाड़ की राजनीति से भी दूरी बनाए हुए हैं। कमलनाथ की सरकार में उनकी काफी उपेक्षा की गई। उन्हें निमाड़ से ही दूर कर सागर सहित अन्य जिलों में चुनावी कमान सौंपी गई थी। पार्टी ने उन्हें कईं मामलों में तरजीह नहीं दी जिसके बाद उन्होंने खुद ही क्षेत्र की राजनीति से किनारा कर लिया। अब पार्टी को कोई दमदार उम्मीदवार नहीं मिल रहा है।
पाटिल की दमदारी पहले से थी मजबूत
भाजपा संगठन में सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल ने काफी मेहनत की। इसलिए इस बार उनकी दावेदारी मजबूत मानी जा रही थी। इतना ही नहीं सांसद के कार्यकाल में निमाड़ की 8 विधानसभाओं में पार्टी को जीत मिली। सांसद के लिए यह काफी प्लस पाइंट रहा। संगठन के नेताओं को उन्होंने अपनी परफार्मेंस रिपोर्ट सौंपी। इसके अलावा जिला पंचायत चुनाव, जनपद चुनाव में भी पार्टी को जीत हासिल हुई। केवल नेपानगर नगर पालिका में ही कांग्रेस की परिषद बन पाई थी वह भी काफी कम अंतर से दो पार्षदों की कमी के कारण भाजपा अपना अध्यक्ष बैठाने से चूक गई थी।
नेपानगर विधानसभा और बुरहानपुर से सबसे ज्यादा मिले वोट
सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल को सबसे अधिक वोट नेपानगर विधानसभा और बुरहानपुर शहरी क्षेत्र से मिले थे। जबकि पाटिल ने पहली बार ही लोकसभा लड़ा था। सांसद नंदकुमार सिंह चौहान नंदु भैया के निधन के बाद खंडवा संसदीय सीट खाली हुई थी तब 2021 में उप चुनाव हुए थे।
और इधर,
न कांग्रेस एकजुट न उम्मीदवार का पता
कांग्रेस संगठन में एकजुटता भी नहीं है। संगठन विधानसभा चुनाव के पहले से बिखरा हुआ है, क्योंकि पूर्व विधायक ठाकुर सुरेंद्र सिंह को विधानसभा चुनाव में बुरहानपुर से टिकट देने पर कांग्रेस के कईं नेता बागी हो गए थे। इसके बाद उन्होंने काम नहीं किया और पार्टी ने कईंयों को छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। ऐसे में पार्टी को हार का सामना भी करना पड़ा। अब लोकसभा के उम्मीदवार के लिए न पार्टी के पास कोई नाम है न ही कोई खुलकर सामने आ रहा है।