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जिले भर में मनाई गई महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि
बुरहानपुर। महात्मा ज्योतिबा फुले ने जाति भेद, वर्ण भेद, लिंग भेद, ऊँच नीच के खिलाफ बड़ी लडाई लड़ी। यही नहीं उन्होंने न्याय व समानता के मूल्यों पर आधारित समाज की परिकल्पना प्रस्तुत की। वे महिला शिक्षा की खुब वकालत करते थे। यही वजह है की 1840 में जब महात्मा ज्योतिबा का विवाह सावित्रीबाई फुले से हुआ तो, उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। सन 1852 में उन्होंने तीन स्कूलों की स्थापना की, लेकिन 1858 में आर्थिक तंगी के कारण ये बंद कर दिए गए। सावित्रीबाई फुले आगे चलकर देश की पहली प्रशिक्षित महिला अध्यापिका बनी। उन्होंने लोगों से अपने बच्चों को शिक्षा जरुर दिलाने का आह्वान किया।
यह बात सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, नारी शिक्षा और समानता के अधिकार के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले जी की पुण्यतिथि पर शनवारा स्थित आदमकद प्रतिमा स्थल पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए युवा नेता हर्षवर्धन नंदकुमार सिंह चौहान ने कही।
श्री चौहान ने कहा अपनी पूरी जिंदगी में छुआछूत, अशिक्षा, महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ और दलितों के उत्थान के लिए लड़ने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले की आज पुण्यतिथि है। भारतीय इतिहास में एक प्रमुख समाज सुधारक के रूप में उन्हें गिना जाता है। देश में जाति-धर्म और सामाजिक असमानता के खिलाफ जिन लोगों ने सबसे ज्यादा मेहनत की है, उनमें महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम बहुत आगे है। फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के कटगुण में हुआ था। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, खासकर महिलाओं और शोषित वर्गों के साथ भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी। फुले ने शिक्षा को सामाजिक सुधार का सबसे शक्तिशाली हथियार माना और महिलाओं की शिक्षा के लिए अथक प्रयास किए। इस दौरान योगेश्वर पाटिल, पार्षद राजेश महाजन, पिंटू बाविस्कर सहित अन्य मौजूद रहे।