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सबल भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान का आरंभ

  • निखिलेश महेश्वरी

सारा जग है प्रेरणा, प्रभाव सिर्फ राम हैं ।
भाव सूचियां ब़हुत हैं, भाव सिर्फ राम हैं ॥

भारत राष्ट्र का नाम आते ही भारत के अनेक उपनाम जुड़ते चले जाते हैं यथा, विश्व गुरु भारत, सांस्कृतिक भारत, आध्यात्मिक भारत, गौरवशाली भारत, संस्कारित भारत, सनातनी भारत, कलात्मक भारत, प्राचीन भारत, अनादि भारत, अनंत भारत, विज्ञानमय भारत ओर मृत्युंजय भारत। जब इतनी उपमाओं से भारत विभूषित है तो समझ आता है, इतना सब कुछ दुनिया को भारत ने दिया हैं। दूसरी ओर यह पीड़ा भी होती है कि इतना कुछ देने वाला मेरा भारत आज कहां खो गया? इसके साथ ही प्रश्नों की एक शृंखला बनती है कि क्या भारत कभी फिर वैसा बन पाएगा? क्या फिर कोई राजा हरिश्चंद्र आएगा? जो सत्य का पाठ पढ़ाएगा? क्या फिर से कोई राजा राम आयेंगे और राम राज्य का स्वप्न साकार करेंगे? क्या कोई चन्द्रगुप्त आएगा जो फिर भारत की सीमाओं को सुरक्षित करेगा? क्या कोई समुद्रगुप्त पुन: भारत में स्वर्णयुग लाएगा? क्या कोई शिवाजी फिर से जन-जन में स्वराज्य का भाव पैदा करेगा? ऐसे कई प्रश्न बरसों से तलाश किए जाते रहे हैं? जिनका उत्तर एक ही हो सकता है कि पुनः भारत अपनी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त करें। भारत के संपूर्ण समाज में फिर से भारत को रामराज्य बनाने की इच्छा हिलोरे लें, तभी भारत का भाग्योदय संभव हैं।
इतिहास में ऐसी कई घटनाएं घटित हुई हैं, जिसके पश्चात देश के भविष्य ने करवट ली। वर्तमान में भी देश में ऐसी एक घटना हुई जिसके पश्चात भारत में नया उत्साह और उमंग के साथ भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक उदय ओर भारत के भाग्योदय के संकेत दिखाई देने लगे हैं। देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर 2019 को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में फैसला दिया। पूरे देश में दीपावली मनाई गई और श्रीराम मंदिर के निर्माण के मार्ग खुल गए। जन-जन के आराध्य भगवान श्रीराम के मंदिर के लिए चले आ रहे 500 वर्षों के संघर्ष को विराम मिला। मैं यहां न्यायालयीन प्रक्रिया की चर्चा या इस संघर्ष में हुए लाखों राम भक्तों के बलिदान और न्यायालयीन प्रक्रिया में अपना जीवन लगाने वाले राम के सेवकों की चर्चा नहीं कर रहा, निश्चित ही उनका योगदान भी राममयी और राम को समर्पित हैं। श्रीराम मंदिर के निर्माण के साथ ही देश में सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, स्वर्णिम और विकसित भारत के जो संकेत दिखाई दे रहे हैं वास्तव में वही भारत को फिर से जग का सिरमौर बनाएंगे।

टूटा-फूटा काम सफल कर देते हैं,
यत्नों का परिणाम सफल कर देते हैं,
सब कहते हैं भाग्य बहुत बलशाली है,
मन कहता है श्री राम सफल कर देते हैं ॥

भारत संभवतः श्रीराम के मंदिर निर्माण की ही प्रतीक्षा कर रहा था । श्रीराम मंदिर के निर्माण के साथ ही भारत का सांस्कृतिक उदय होना प्रारंभ हुआ। काशी में भगवान विश्वनाथ के मंदिर का कोरिडोर, भगवान महाकाल के मंदिर का महाकाल लोक, हनुमानजी महाराज की चार धाम परियोजना जिसके अंतर्गत देश भर में हनुमानजी की चार विशाल प्रतिमाएं लगाई जा रही हैं । हिमाचल प्रदेश की जाखू पहाड़ी, गुजरात के मोरबी में 108 फीट ऊंची हनुमानजी की प्रतिमा, शेष दो प्रतिमाओं का निर्माण तमिलनाडु के रामेश्वरम और पश्चिम बंगाल में हो रहा है । उत्तराखंड स्थित चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की बेहद कठिन यात्रा को सुगम करने के लिए पहाड़ों को चीरकर रास्ता बनाया गया, जिससे आज चार धाम की यात्रा करना काफी सुविधाजनक हो चुका है।
आज देखने में आ रहा है कि मंदिरों में दर्शन करने वालों की संख्या आशातीत बढ़ी है । समाजजन भी अपने निजी संस्थान को वास्तुशास्त्र का ध्यान रखकर बना रहे हैं, अपने निजी संस्थानों में देव स्थान का निर्माण कर रहै हैं । आश्रमों और कथा-सभा में संत और प्रवचनकारों के आयोजनों में बड़ी संख्या में लोग उन्हें सुनने आ रहे हैं । लोग मन की शांति के लिए प्राणायाम, ध्यान केंद्र, धार्मिक अनुष्ठान और सेवा कार्य में बढ़ चढ़कर भाग ले रहे हैं । यह भारत का आध्यात्मिक जागरण मनुष्य को नैतिकता की ओर बढ़ा रहा है । कभी नारे लगते थे ‘रोटी,कपड़ा और मकान’ । यह नारे आज सुनने में नहीं आते । बुनियादी सुविधाएँ बढ़ी हैं । नागरिकों की आर्थिक उन्नति हुई है । यह देश की मजबूत होती अर्थ व्यवस्था के शुभ संकेत है जो भारत को विकसित भारत के रुप में विश्व में स्थापित करेगा ।
निश्चित ही आज भारत के समर्थ नेतृत्व ने भारत में सुशासन दिया जिसका श्रेय देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है लेकिन उनके पीछे की शक्ति भारत के नागरिक और उन नागरिकों में राष्ट्र भक्ति, हिन्दुत्व ओर स्व के भाव का जागरण करने वाले हिन्दू संगठन हैं । इन संगठनों के पास कार्यकर्ताओं की एक विशाल फौज है जो शासन के राष्ट्रवादी ओर देश हित के कार्यों के लिए अपना सबकुछ अर्पण करने के लिए हर समय तैयार रहती है । आज श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जनता में भारी उत्साह है । भारत के जन-जन के ह्रदय में राम को बिठाने के लिए 500 वर्षो के संघर्ष को जीवित रखने का कार्य भी इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने ही किया है ।

राम आएँगे तो, अंगना सजाऊँगी,
दिप जलाके, दिवाली मनाऊँगी,
मेरे जन्मो के सारे, पाप मिट जाएंगे,
राम आएँगे, मेरी झोपडी के भाग,
आज खुल जाएंगे, राम आएँगे ॥

हजारों वर्षो के पश्चात संपूर्ण हिन्दू समाज एक साथ आया है। जब-जब संपूर्ण समाज साथ आया है तब भारत ने विश्व गुरु बनकर दुनिया को मार्ग दिखाया है। जब-जब एक साथ समाज खड़ा हुआ तब सेल्युकस जैसे आक्रांता ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया है । समाज ने जब-जब सामूहिकता का परिचय दिया भारत में स्वर्णयुग आया है । श्रीराम मंदिर निर्माण के साथ ही भारत में वैसा दृश्य निर्मित हो रहा है और लग रहा हैं फिर राम राज्य आ रहा हैं। आइये हम सब भी गिलहरी के योगदान के समान ही इस स्वप्न को साकार करने में अपनी भूमिका का निर्वाहन करें । अपने गांव, मोहल्ले को ही अयोध्या बनाए, अपने घर को ही मंदिर बनाएँ और भगवान श्रीराम के दिखाए मार्ग को अपने आचरण में लाकर सभी को गले लगाएँ ।

जीवन की सुरभित नदियों की,
वह अविरल जल धारा है
राम सदा प्राणों में बसते, उन पर तन-मन वारा है ॥

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