-
आपस में ही थम नहीं रहा विरोध का दौर, जिन लोगों को चुनाव में हराया अब वह निकाल रहे बदला
बुरहानपुर। लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक सरगर्मी जारी है। इसी बीच कांग्रेस में एकजुटता के प्रयास शुरू हो गए थे। शनिवार को एक लिस्ट जारी होने वाली थी। जिसमें विधानसभा चुनाव में पार्टी से निष्कासित होने वाले नेताओं की बहाली होने वाली थी, लेकिन सोमवार को भी यह लिस्ट जारी नहीं हुई। एक दिन पहले पूर्व विधायक के निवास पर रखी गई प्रेस कांफ्रेंस भी अचानक रात में ही निरस्त कर दी गई। इसके बाद यह बात खुलकर सामने आई कि कांग्रेसियों में आपस में ही गुटबाजी नहीं थम रही है। जिन लोगों ने विधानसभा चुनाव हराया था अब उन्हें वापस कुछ माह में ही पार्टी में लाने का खुलकर विरोध किया जा रहा है, हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी इसके पक्ष में नहीं हैं। वह चाहते हैं कि सभी नेता एकजुट हो जाएं और लोकसभा चुनाव लड़ें।
दो सिंह के चक्कर में सूची अटकी
सूत्रों के अनुसार दो सिंह के कारण कांग्रेस की सूची फिर अटक गई है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष चाहते हैं कि सूची जारी हो और लोकसभा में सब एकजुटता से चुनाव लड़ें, लेकिन बुरहानपुर के एक सिंह और खंडवा के एक सिंह ने विरोध कायम रखा है। बुरहानपुर के सिंह को चुनाव हराने वाले भी एक सिंह ही थे और नगर में चर्चा है कि उन्हें भी महापौर का चुनाव इन्हीं सिंह ने हरवा दिया था जो विधानसभा हारे हैं।
अरूण यादव चाहते हैं अपने समर्थकों की वापसी
दरअसल इस लोकसभा चुनाव में पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, क्योंकि उन्होंने ही चुनाव लड़ने से इनकार करते हुए अपने समर्थक नरेंद्र पटेल को मैदान में उतारा है। अब वह अपने समर्थकों को इस बहाने पार्टी में वापस भी लाना चाहते हैं। यही वजह है कि ईद के अवसर पर वह निष्कासित कांग्रेस नेताओं के साथ देखे गए थे। यहां तक कि कुछ के घर ईद मिलने भी गए थे।
कांग्रेस एकजुट नहीं होगी तो होगा नुकसान
बताया जा रहा है कि अगर कांग्रेस एकजुट नहीं हुई तो इसका नुकसान इस बार भी पार्टी को उठाना पड़ेगा। जो कहानी विधानसभा चुनाव में दोहराई गई थी वहीं कहानी फिर लोकसभा में भी दोहराई जाएगी। बताया जा रहा है कमलनाथ और दिग्विजयसिंह समर्थक नहीं चाहते कि बागी नेताओं की पार्टी में वापसी हो।
कांग्रेस कार्यकर्ता असमंजस में, किसकी बात मानें
इन दिनों कांग्रेस कार्यकर्ता आहत हैं। वह असमंजस में हैं कि आखिरी किसकी बात मानें। कांग्रेस में अलग अलग गुट हो गए हैं। सभी कांग्रेस को जिताना भी चाहते हैं और एकजुट भी नहीं होना चाहते। एक दूसरे से पिछले चुनावों के बदले निकालने के चक्कर में पार्टी को हार का सामना करना पड़ सकता है।
और इधर….।
भाजपा में भी गुटबाजी, आसान नहीं दादा की राह
भारतीय जनता पार्टी में भी गुटबाजी है। पहले यह छिपे तौर पर होती थी, लेकिन अब खुले तौर पर भी हो रही है। इसका उदाहरण सोमवार को ग्राम बहादरपुर में देखने को मिला। विदित हो कि भाजपा के खंडवा लोकसभा प्रत्याशी ज्ञानेश्वर पाटिल का जनसंपर्क अभियान शुरू हो रहा था। यहां एक जनप्रतिनिधि को ट्रक का काम करने की बात पर एक भाजपा नेता द्वारा टोका जाना चर्चा का विषय बना हुआ है। इसलिए कहा जा रहा है कि दादा दयालु की राह इतनी आसान भी नहीं है।