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आदिवासी समाज के लोगों ने नावरा पुलिस चौकी पहुंचकर दर्ज कराया विरोध
बुरहानपुर। हाल ही में आदिवासी कार्यकर्ता रतन अलावे को जिला प्रशासन ने जिला बदर किया है। इसे लेकर रविवार शाम काफी संख्या में आदिवासी समाज के लोग नेपानगर क्षेत्र की बाकड़ी वन चौकी पहुंचे और विरोध दर्ज कराया।
समाज के लोगों ने कहा- अवैध कटाई का सतत् विरोध करते आ रहे आदिवासी कार्यकर्ता रतन अलावे को कलेक्टर के एक साल के लिए बुरहानपुर से जिला बदर किया। इसका हम विरोध करते हैं। इस आदेश के खिलाफ आदिवासियों ने नावरा पुलिस चौकी में तीखा विरोध किया। आदेश अनुसार रविवार रात को रतन अलावे को बुरहानपुर के राजस्व सीमाओं से बाहर जाना था। जवाब में ग्रामीणों ने नावरा पुलिस चौकी पहुंचे। इस आदेश पर ठीका विरोध कर अपना आक्रोश जताया। रतन अलावे के साथ एकजुटता दिखाते हुए उन्हें बुरहानपुर के राजस्व सीमाओं से सुरक्षित बाहर पहुंचाया। ग्रामीणों ने एकजुट होकर प्रशासन को साफ संदेश दिया। रतन अलावे अकेले नहीं हैं, अगर एक रतन को जिला बदर करोगे, तो सौ और रतन खड़े होंगे। जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों के अधिकार के लिए लड़ाई जारी रखी जाएगी। जिला प्रशासन और वन विभाग के भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी के खिलाफ आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को जिला बदर करने के दुस्साहसी आदेश से हम दबने वाले नहीं है।
प्रशासन को की थी शिकायतें
रतन अलावे ने जागृत आदिवासी दलित संगठन के माध्यम से 2020 में घाघरला, 2021 में कुमठा बीट और 2022 में डेहरिया क्षेत्र में हुई अवैध कटाई की शिकायतें मुख्यमंत्री, डीएफओ, सीसीएफ और प्रमुख सचिव तक पहुंचाई थीं। फिर भी शासन प्रशासन ने लगातार आंखें मूंदी रखीं। 2024 में जब बड़े पैमाने पर कार्रवाई, लेकिन तब तक प्राकृतिक जंगल का नष्ट हो चुका था।
10-15 हजार एकड़ जंगल की कटाई हुई
2022-23 में बुरहानपुर जिले में छह महीने तक वन विभाग और प्रशासन की मिलीभगत से करीब 10-15 हजार एकड़ जंगल की कटाई और लकड़ी तस्करी हुई जिसकी लगातार शिकायतें रतन ने सभी स्तरों पर की। अप्रैल 2023 में इस विषय पर हज़ारों आदिवासियों द्वारा किया गया तीन दिवसीय घेराव रतन के नेतृत्व में हुआ जिसके बाद ही प्रशासन अपनी नींद से जागा और अवैध कटाई पर कार्यवाही शुरू हुई उसी कटाई में रतन अलावे को आरोपी बनाना पूरी तरह से बेतुका और बेबुनियाद है। हाल ही में 9 जून 2025 को 8000 से अधिक वन अधिकार दावों को बिना सत्यापन, बिना ग्राम सभा और बिना अपील का अवसर दिए खारिज करने के खिलाफ 10 हज़ार से अधिक आदिवासियों के आंदोलन में भी रतन अलावे का नेतृत्व रहा। उन्होने मौके पर मौजूद एडीएम वीर सिंह चौहान से स्पष्ट रूप से कानून के उल्लंघन पर सवाल जवाब भी किया था। इसके बाद एडीएम ने सार्वजनिक आश्वासन दिया कि दावों की दोबारा जांच होगी और वन विभाग द्वारा अवैध रूप से जब्त ट्रैक्टर व बैल जोड़ी की वापसी के निर्देश दिए जाएंगे। अब प्रशासन ने उन्हीं रतन अलावे को चुप कराने के लिए जिला बदर का हथियार इस्तेमाल किया है। रतन पर छह केसों का हवाला दिया गया। तीन वन अपराध जिनमें न तो कोई गिरफ्तारी हुई न ही अब तक अदालत में कोई चार्जशीट पेश की गई। बाकी तीन केसों में एक 2010 का है जिसमें न्यायालय ने उन्हें दोषमुक्त किया था। एक 2022 का जो अवैध बेदखली के खिलाफ विरोध पर दर्ज हुआ और विचाराधीन है और एक 2024 का जिसमें अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है। यह स्पष्ट है कि रतन के खिलाफ कोई गंभीर या वैधानिक आधार नहीं है केवल प्रशासनिक द्वेष और दुस्साहस है।
पहले भी हो चुकी है जिला बदर की कार्रवाई
आदिवासी कार्यकर्ताओं को जिला बदर कर दबाने की कोशिश करने का यह पहला मामला नहीं है। 2024 में सामाजिक कार्यकर्ता अंतराम अवासे को भी तत्कालीन कलेक्टर भव्या मित्तल ने इसी तरह जिला बदर किया था जिसे मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राजनीतिक दबाव में पारित आदेश करार देते हुए राज्य शासन पर 50000 का जुर्माना लगाया था। फिर भी प्रशासन की तानाशाही जारी है। जागृत आदिवासी दलित संगठन इस अन्यायपूर्ण, निराधार आदेश के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेगा।